Tuesday, July 17, 2007

चलते हुए मनुष्य सदियों से सत्य की खोज कर रहा है इस उम्मीद में कि खोजने वाले ऐसे किसी सत्य का अस्तित्त्व है । ऐसे में अगर उसे पता चले कि उसके खोज कि इस यात्रा का अंत ही नही(बेमुकाम) - न कोई अच्छा (जन्नत) और न कोई बुरा ही (जहन्नुम) , तो फिर मेहनत किस लिए(जद्दोजेहद) । और अगर कल को उसे पता चले कि जिस डोर को पकड़ कर ("उसी की" यानी अल्लाह या भगवन) वह सत्य की खोज कि आशा कर रहा है वही असत्य है (फजूलियत) तो क्या तब भी वह उसी श्रद्घा से , उसी भावना से पूजा करेगा (सजदा) ।

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