Tuesday, July 17, 2007

चलते हुए सोच रहा हूँ ,
चलने से मिलेगा क्या ?

चलते-चलते थक जाऊँगा ,
पानी के लिए कोई पूछेगा क्या ?

मंज़िल मिले-ना-मिले ,भरोसा
कभी कोई इसका दे सकेगा क्या ?

चलना , और सिर्फ चलना ही अगर
जिन्दगी है ,कोई इससे छुटकारा देगा क्या ?

चले गए कितने राही , लौट के
अपना हाल-ए-बयां कोई देगा क्या ?

कोई न खबर अगर उन्हीं की ,
फिर उम्मीद का इन्सान करेगा क्या ?

बेमुकाम जो , जन्नत न जिसकी जहन्नुम
गुमनाम , ऐसी जद्दोजहद का मतलब क्या ?

हो इल्म अगर उसी की फ़ज़ूलियत का ,
तू फिर भी रोज़ सजदा करेगा क्या ?

1 comment:

Shivam said...

vipul ek mast poet, writer
hai i luv ur poems ,stories