Tuesday, July 17, 2007
चलते हुए मनुष्य सदियों से सत्य की खोज कर रहा है इस उम्मीद में कि खोजने वाले ऐसे किसी सत्य का अस्तित्त्व है । ऐसे में अगर उसे पता चले कि उसके खोज कि इस यात्रा का अंत ही नही(बेमुकाम) - न कोई अच्छा (जन्नत) और न कोई बुरा ही (जहन्नुम) , तो फिर मेहनत किस लिए(जद्दोजेहद) । और अगर कल को उसे पता चले कि जिस डोर को पकड़ कर ("उसी की" यानी अल्लाह या भगवन) वह सत्य की खोज कि आशा कर रहा है वही असत्य है (फजूलियत) तो क्या तब भी वह उसी श्रद्घा से , उसी भावना से पूजा करेगा (सजदा) ।
चलते हुए सोच रहा हूँ ,
चलने से मिलेगा क्या ?
चलते-चलते थक जाऊँगा ,
पानी के लिए कोई पूछेगा क्या ?
मंज़िल मिले-ना-मिले ,भरोसा
कभी कोई इसका दे सकेगा क्या ?
चलना , और सिर्फ चलना ही अगर
जिन्दगी है ,कोई इससे छुटकारा देगा क्या ?
चले गए कितने राही , लौट के
अपना हाल-ए-बयां कोई देगा क्या ?
कोई न खबर अगर उन्हीं की ,
फिर उम्मीद का इन्सान करेगा क्या ?
बेमुकाम जो , जन्नत न जिसकी जहन्नुम
गुमनाम , ऐसी जद्दोजहद का मतलब क्या ?
हो इल्म अगर उसी की फ़ज़ूलियत का ,
तू फिर भी रोज़ सजदा करेगा क्या ?
चलने से मिलेगा क्या ?
चलते-चलते थक जाऊँगा ,
पानी के लिए कोई पूछेगा क्या ?
मंज़िल मिले-ना-मिले ,भरोसा
कभी कोई इसका दे सकेगा क्या ?
चलना , और सिर्फ चलना ही अगर
जिन्दगी है ,कोई इससे छुटकारा देगा क्या ?
चले गए कितने राही , लौट के
अपना हाल-ए-बयां कोई देगा क्या ?
कोई न खबर अगर उन्हीं की ,
फिर उम्मीद का इन्सान करेगा क्या ?
बेमुकाम जो , जन्नत न जिसकी जहन्नुम
गुमनाम , ऐसी जद्दोजहद का मतलब क्या ?
हो इल्म अगर उसी की फ़ज़ूलियत का ,
तू फिर भी रोज़ सजदा करेगा क्या ?
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